कालसर्प एक ऐसा योग है जो मनुष्य के पूर्व जन्मो के किसी अपराध के दंड या श्राप के फलस्वरूप उसकी
जब मनुष्य की जन्मकुंडली में केतु छठे और राहु बारहवे भाव में हो तथा इसके बीच सारे ग्रह आ जाये
जब मनुष्य की जन्मकुंडली में केतु पंचम और राहु ग्यारहवे भाव में हो तो विषधर कालसर्प योग बनता हैं। मनुष्य
जब मनुष्य की जन्मकुंडली में केतु चतुर्थ तथा राहु दशम स्थान में हो तो घातक कालसर्प योग बनाते हैं। इस
जब मनुष्य की जन्मकुंडली में केतु तीसरे स्थान में व राहु नवम स्थान में शंखचूड़ नामक कालसर्प योग बनता है।
जब मनुष्य की जन्मकुंडली में केतु दूसरे स्थान में और राहु अष्टम स्थान में कर्कोटक नाम कालसर्प योग होता है।
जब मनुष्य की जन्मकुंडली में केतु लग्न में और राहु सप्तम स्थान में हो तो तक्षक नामक कालसर्प योग बनता
जब मनुष्य की जन्मकुंडली में राहु छठे भाव में और केतु बारहवे भाव में और इसके बीच सारे ग्रह अवस्थित
जब मनुष्य की जन्मकुंडली में राहु पंचम व केतु एकादश भाव में तथा इस बीच सारे ग्रह हों तो पद्म