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कर्कोटक कालसर्प योग/दोष

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कर्कोटक कालसर्प योग

जब मनुष्य की जन्मकुंडली में केतु दूसरे स्थान में और राहु अष्टम स्थान में कर्कोटक नाम कालसर्प योग होता है। ऐसे मनुष्यो के भाग्योदय में इस योग की वजह से कुछ रुकावटें अवश्य आती हैं। नौकरी मिलने व पदोन्नति होने में भी कठिनाइयां आती हैं। कभी-कभी तो उन्हें बड़े ओहदे से छोटे ओहदे पर काम करने का भी दंड भुगतना पड़ता है। पैतृक संपत्ति से भी ऐसे जातकों को मनोनुकूल लाभ नहीं मिल पाता है । व्यापार में भी समय-समय पर क्षति होती रहती है। कोई भी काम बढ़िया से चल नहीं पाता है । कठिन परिश्रम के बावजूद उन्हें पूरा लाभ नहीं मिलता है । मित्रों से धोखा मिलता है तथा शारीरिक रोग व मानसिक परेशानियों से व्यथित जातक को अपने कुटुंब व रिश्तेदारों के बीच भी सम्मान नहीं मिलता है । चिड़चिड़ा स्वभाव व मुंहफट बोली से उसे कई झगड़ों में फंसना पड़ता है। उसका उधार दिया धन भी डूब जाता है। शत्रू षड़यंत्र व अकाल मृत्यु का मनुष्य को बराबर भय बना रहता है। उक्त परेशानियों से बचने के लिए मनुष्य निम्न उपाय करने चाहिए ।

अनुकूल करने के उपाय :-

• अपने सोने वाले कमरे में लाल रंग के पर्दे, चादर व तकियों का प्रयोग करें।
• सवा महीने तक जौ के दाने पक्षियों को खिलाएं और प्रत्येक शनिवार को चींटियों को शक्कर मिश्रित सत्तू उनके बिलों पर डालें।
• किसी शुभ मुहूर्त में सूखे नारियल के फल को बहते जल में तीन बार प्रवाहित करें तथा किसी शुभ मुहूर्त में शनिवार के दिन बहते पानी में तीन बार कोयला भी प्रवाहित करें।
• हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें और पांच मंगलवार का व्रत करते हुए हनुमान जी को चमेली के तेल में घुला सिंदूर व बूंदी के लड्डू चढ़ाएं।
• काल सर्प दोष निवारण यंत्र घर में स्थापित कर उसका प्रतिदिन पूजन करें और शनिवार को कटोरी में सरसों का तेल लेकर उसमें अपना मुंह देख एक सिक्का अपने सिर पर तीन बार घुमाते हुए तेल में डाल दें और उस कटोरी को किसी गरीब आदमी को दान दें अथवा पीपल की जड़ में चढ़ा दें।

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