कालसर्प योग या दोष !
कालसर्प एक ऐसा योग है जो मनुष्य के पूर्व जन्मो के किसी अपराध के दंड या श्राप के फलस्वरूप उसकी जन्मकुंडली में परिलक्षित होता है। व्यावहारिक रूप से पीड़ित मनुष्य आर्थिक व शारीरिक रूप से दुखी तो होता है, परन्तु मुख्य रूप से उसे संतान संबंधी कष्टों का सामना करना पड़ता है । या तो उसे संतान की प्राप्ति होती ही नहीं, यदि होती है तो वह बहुत ही दुर्बल व रोगी होती है। उसकी रोजी-रोटी का प्रबंध भी बड़ी मुश्किल से हो पाता है। धनाढय घर में पैदा होने के बाद भी किसी न किसी वजह से उसे अप्रत्याशित रूप से आर्थिक नुकसान होता रहता है । तरह तरह के रोगो का उसको सामना करना पड़ता है |
जन्मकुण्डली से जाने काल सर्प के विषय में
जब भी जन्म कुंडली में सारे ग्रह राहु और केतु के बीच स्थित रहते हैं तो उससे ज्योतिष विद्या के ज्ञाता व्यक्ति यह फलादेश आसानी से निकाल लेते हैं कि संबंधित मनुष्य पर आने वाली परेशानियाँ कालसर्प योग की वजह से हैं। परंतु याद रहे, कालसर्प योग वाले सभी जातकों पर इस योग का समान प्रभाव कभी नहीं पड़ता। किस भाव में कौन सी राशि अवस्थित है और उसमें कौन-कौन ग्रह कहाँ- कहाँ बैठे हैं और उनका बल कितना है – इन सब बातों का भी संबंधित मनुष्य पर भरपूर असर पड़ता है। इसलिए मात्र कालसर्प योग सुनकर भयभीत हो जाने की आवश्यकता नहीं वरन उसका ज्योतिषीय विश्लेषण करके उसके प्रभावों की विस्तृत जानकारी लेना ही बुद्धिमत्ता होती है । जब असली कारण ज्योतिषीय विश्लेषण से स्पष्ट हो जाये तो मनुष्य को तत्काल उसका उपाय करना चाहिए। नीचे कुछ ज्योतिषीय स्थितियां दी जा रही हैं जिनमें कालसर्प योग बड़ी तीव्रता से संबंधित मनुष्य को परेशान किया करता है।
ज्योतिषीय स्थितियां
प्रतिकूल स्थितियां
• जब राहु के साथ चंद्रमा लग्न में हो और मनुष्य को बात-बात में भ्रम की स्थिति दिमाग में उत्पन्न होती रहती हो, या उसे हमेशा लगता है कि कोई उसे नुकसान पहुँचा सकता है या वह व्यक्ति हमेशा मानसिक तौर पर पीड़ित रहता है।
• चंद्रमा से द्वितीय व द्वादश भाव में कोई ग्रह न हो। यानी केंद्रुम योग हो और चंद्रमा या लग्न से केंद्र में कोई ग्रह न हो तो मनुष्य को मुख्य रूप से आर्थिक परेशानी का सामना करना पड़ता ही है ।
• जब राहु के साथ शनि की युति हो अर्थात नंद योग बन रहा हो तब भी मनुष्य के स्वास्थ्य व संतान पर विपरीत प्रभाव पड़ता है, उसकी कारोबारी परेशानियाँ बढ़ जाती हैं।
• यदि जन्म कुंडली में शनि चतुर्थ भाव में और राहु बारहवें भाव में स्थित हो तो मनुष्य बहुत बड़ा धूर्त व कपटी होता है। इसकी वजह से उसे बहुत बड़ी विपत्ति में भी फंस जाता है।
• जब दशम भाव का नवांश स्वामी राहु या केतु से युक्त हो तब मनुष्य मृत्यु के तुल्य कष्ट पाने की प्रबल आशंका बनी रहती है।
• जब कालसर्प योग में राहु के साथ शुक्र की युति हो तो मनुष्य को संतान संबंधी ग्रह बाधा उत्पन्न होती है।
• जब लग्न में राहु-चंद्र हों तथा पंचम, नवम या द्वादश भाव में मंगल या शनि अवस्थित हों तब मनुष्य की दिमागी स्थिति ठीक नहीं रहती। उसे प्रेत-पिशाच बाधा से भी पीड़ित होना पड़ता है।
• जब राहु के साथ बृहस्पति की युति हो तब मनुष्य को तरह-तरह के अनिष्टों से रूबरू होना पड़ता है।
• जब राहु व मंगल के बीच षडाष्टक संबंध हो तब मनुष्य को बहुत कष्ट होता है। वैसी स्थिति में तो कष्ट और भी अधिक बढ़ जाते हैं जब राहु मंगल से दृष्ट हो।
• जब लग्न व लग्नेश पीड़ित हो, तब भी मनुष्य शारीरिक व मानसिक रूप से परेशान रहता है।
• जब दशम भाव का नवांशेश मंगल/राहु या शनि से युति करे तब संबंधित मनुष्य को हमेशा अग्नि से भय रहता है और अग्नि से सावधान रहने के आवश्यकता है ।
• जब लग्न में मेष, वृश्चिक, कर्क या धनु राशि हो और उसमें बृहस्पति व मंगल स्थित हों, राहु की स्थिति पंचम भाव में हो तथा वह मंगल या बुध से युक्त या दृष्ट हो, अथवा राहु पंचम भाव में स्थित हो तो संबंधित मनुष्य की संतान पर कभी न कभी भारी मुसीबत आ जाती है, अथवा मनुष्य किसी बड़े संकट या आपराधिक मामलो में फंस सकता है।
• जब अष्टम भाव में राहु पर मंगल, शनि या सूर्य की दृष्टि हो तब मनुष्य के विवाह में विघ्न, या देरी होती है।
• जब राहु की मंगल से युति हो यानी अंगारक योग बन रहा हो तब संबंधित मनुष्य को भारी कष्ट का सामना करना पड़ता है।
• जब राहु के साथ सूर्य या चंद्रमा की युति हो तब भी मनुष्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, शारीरिक व आर्थिक परेशानियाँ बढ़ जाती हैं।
• जब राहु की बुध से युति यानी जड़त्व योग हो तब भी मनुष्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, उसकी आर्थिक व सामाजिक परेशानियाँ बढ़ती हैं।
अनुकूल स्थितियां
• जब शुक्र दूसरे या बारहवे भाव में स्थित हो तब मनुष्य को अनुकूल फल प्राप्त होते हैं।
• जब राहु अदृश्य भावों में स्थित हो और दूसरे ग्रह दृश्य भावों में स्थित हों तब संबंधित जातक का कालसर्प योग समृध्दि देने वाला होता है।
• जब राहु छठे भाव में अवस्थित हो तथा बृहस्पति केंद्र में हो तब मनुष्य का जीवन खुशहाल व्यतीत होता है।
• जब मंगल की युति चंद्रमा से केंद्र में अपनी राशि अथवा उच्च राशि में हो, या अशुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट न हों। तब कालसर्प योग की सारी परेशानियां कम हो जाती हैं।
• जब राहु व चंद्रमा की युति केंद्र (पहले, चौथे, सातवे अथवा दसवे भाव) या त्रिकोण में हो तब मनुष्य के जीवन में सुख-समृद्धि की सारी सुविधाएं उपलब्ध होती है।
• जब शनि अपनी राशि या अपनी उच्च राशि में केंद्र में अवस्थित हो तथा किसी अशुभ ग्रह से युक्त या दृष्ट न हों। तब भी काल सर्प योग का असर बहुत कम हो जाता है।
• जब बुधादित्य योग हो और बुध अस्त न हो तब भी मनुष्य को अनुकूल फल प्राप्त होते हैं।
• जब राहु छठे भाव में तथा बृहस्पति केंद्र या दशम भाव में अवस्थित हो तब मनुष्य के जीवन में धन-धान्य की जरा भी कमी नहीं रहती ।
• जब लग्न मेष, वृष या कर्क हो और राहु की स्थिति पहले, तीसरे, चौथे, पांचवे, छठे, सातवे, आठवे, ग्याहरहवें, अथवा बारहवे भाव में हो। तब उस स्थिति में मनुष्य स्त्री, पुत्र, धन-धान्य व अच्छे स्वास्थ्य का सुख प्राप्त करता है।
• जब दशम भाव में मंगल बली हो तथा किसी अशुभ भाव से युक्त या दृष्ट न हो। तब मनुष्य पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता।
• जब शुक्र से मालव्य योग बनता हो, यानी शुक्र अपनी राशि में या उच्च राशि में केंद्र में अवस्थित हो और किसी अशुभ ग्रह से युक्त या दृष्ट न हो रहा हो। तब कालसर्प योग का विपरीत असर बहुत कम हो जाता है।
• जब लग्न व लग्नेश सूर्य व चंद्र कुंडली में बलवान हों साथ ही साथ किसी शुभ भाव में अवस्थित हों तथा शुभ ग्रहों द्वारा देखे जा रहे हों। तब कालसर्प योग की प्रतिकूलता कम होती है।
कालसर्प योग का असर केवल बुरा ही नहीं होता
उक्त लक्षणों का उल्लेख इस दृष्टि से किया गया है ताकि सामान्य लोगो को कालसर्प योग के बुरे प्रभावों की पर्याप्त जानकारी हासिल हो सके। लेकिन ऐसा नहीं है कि कालसर्प योग सभी मनुष्यो के लिए बुरा ही होता है। अलग अलग लग्नों व राशियों में अवस्थित ग्रह जन्म-कुंडली के किस भाव में हैं, इसके आधार पर ही कोई अंतिम निर्णय किया जाता है। कालसर्प योग वाले बहुत से ऐसे व्यक्ति हो चुके हैं, जो अनेको कठिनाइयों का सामना करते हुए ऊँचे पदों तक पहुंच चुके है । जिनमें भारत के प्रथम प्रधानमंत्री स्व॰ पं॰ जवाहर लाल नेहरू का नाम शामिल है। स्व॰ मोरारजी भाई देसाई व श्री चंद्रशेखर सिंह भी कालसर्प आदि योग से ग्रसित थे। किंतु वे भी भारत के प्रधानमंत्री पद को सुशोभित कर चुके हैं। अत: किसी भी स्थिति में व्यक्ति को मायूस कदापि नहीं होना चाहिए और उसे अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए हमेशा अपने चहुंमुखी प्रगति के लिए सतत रहना चाहिए। यदि कालसर्प योग का प्रभाव किसी मनुष्य के लिए अनिष्टकारी हो तो उसे दूर करने के उपाय भी किये जा सकते हैं। हमारे प्राचीन ग्रंथों में ऐसे कई उपायों का उल्लेख है, जिनके माध्यम से हर प्रकार की ग्रह-बाधाएं व पूर्वकृत अशुभ कर्मों का प्रायश्चित किया जा सकता है। यह एक ज्योतिषिय विश्लेषण था पुन: आपको याद याद करवा दे कि हमें अपने जीवन में मिलने वाले सारे अच्छे या बुरे फल अपने निजकृत कर्मो के आधार पर है, इसलिए ग्रहों को दोष न दें और कर्म सुधारें और त्रिसूत्रिय नुस्खे को अपने जीवन में अपनायें और हमारे बताये गए उपायों को अपने जीवन में प्रयोग में लायें, आपके कष्ट जरुर समाप्त होंगे। त्रिसूत्रिय नुस्खा: नि:स्वार्थ भाव से माता-पिता की सेवा, पति-पत्नी का धर्मानुकूल आचरण, देश के प्रति समर्पण और वफादारी। यह उपाय अपनाते हुए मात्र इक्कीस शनिवार और इक्कीस मंगलवार किसी शनि मंदिर में आकर नियमित श्री शनि पूजन, श्री शनिदेव जी का तेल से अभिषेक व श्री शनिदेव के दर्शन करेंगे तो आपके कष्ट अवश्य ही समाप्त होंगे। आपके जन्म कुंडली में कालसर्प योग है या नहीं? घबरायें नहीं, आप समय लेकर किसी योग्य पंडित से मिलें।
कालसर्पयोग के प्रकार:-
कालसर्प योग के प्रमुख भेद कालसर्प योग मुख्यत: 12 प्रकार के माने गये हैं। आगे सभी भेदों को उदाहरण कुंडली प्रस्तुत करते हुए समझाने का प्रयास किया गया है! दिए गए लिंक पर क्लिक कर के आप आगे पढ़ सकते है :-
1. अनन्त कालसर्प योग/ दोष
2. कुलिक कालसर्प योग/ दोष
3. वासुकी कालसर्प योग/ दोष
4. शंखपाल कालसर्प योग/ दोष
5. पद्म कालसर्प योग/ दोष
6. महापद्म कालसर्प योग/ दोष
7. तक्षक कालसर्प योग/ दोष
8. कर्कोटक कालसर्प योग/ दोष
9. शंखचूड़ कालसर्प योग/ दोष
10. घातक कालसर्प योग/ दोष
11. विषधर कालसर्प योग/ दोष
12. शेषनाग कालसर्प योग/ दोष