करवा चौथ व्रत की कहानी || Story of Karwa Chauth Vrat (Fast)
करवा चौथ का व्रत : Karwa Chauth Vrat
करवा चौथ का पर्व कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। सुहागन महिलाओं के लिए करवा चौथ महत्वपूर्ण होता है। इस दिन महिलाएं करवा चौथ का व्रत निर्जला रखती हैं। प्रातकाल में जल्दी उठकर स्नान कर व सरगी ( सास द्वारा दी गई मिठाई, फल , मेवे ) खा कर व्रत का आरम्भ करती है| सायं काल में सभी सुहागिने एकत्र हो कर विधि पूर्वक चौथ माता की पूजा कर कथा सुनती है | और रात्रि में चन्द्रमा के उदय के साथ ही चन्द्रमा की पूजा करती है व छलनी से चांद देखकर और पति की आरती उतारकर, पति के द्वारा जल ग्रहण कर अपना व्रत खोलती है |
करवा चौथ व्रत की कहानी : Story of Karwa Chauth Vrat (Fast)
प्राचीन काल में एक ब्राह्मण के चार बेटे और एक बेटी थी। चारों भाई अपनी बहन को बहुत प्रेम करते थे और उसका छोटा-सा कष्ट भी उन्हें बहुत बड़ा लगता था। ब्राह्मण की बेटी का विवाह होने पर एक बार वह जब मायके में थी, तब करवा चौथ का व्रत पड़ा। उसने व्रत को विधिपूर्वक किया। पूरे दिन निर्जला रही।
उसके चारों भाई परेशान थे कि बहन को प्यास लगी होगी, भूख लगी होगी पर बहन चंद्रोदय के बाद ही जल ग्रहण करेगी। भाइयों से बहन को भूखा-प्यासा देखकर रहा ना गया और उन्होंने शाम होते ही बहन को बनावटी चंद्रोदय दिखा दिया। एक भाई पीपल के पेड़ पर छलनी लेकर चढ़ गया और दीपक जलाकर छलनी से रोशनी छितरा दी। तभी दूसरे भाई ने नीचे से बहन को आवाज दी- देखो बहन, चंद्रमा निकल आया है, पूजन कर भोजन ग्रहण कर लो। बहन ने ऐसा ही किया। भोजन करते ही उसे पति की मृत्यु का समाचार मिला। अब वह दुःखी हो विलाप करने लगी। उस समय वहां से रानी इंद्राणी निकल रही थीं, उनसे उसका दुःख न देखा गया!
वह विलाप करती हुई ब्राह्मण कन्या के पास गई। तब ब्राह्मण कन्या ने अपने इस दुःख कर्म पूछा, तब इंद्राणी ने कहा ! तुमने बिना चंद्रदर्शन किए ही करवा चौथ का व्रत तोड़ दिया इसीलिए यह कष्ट मिला है। अब तुम वर्षभर में आनेवाली चतुर्थी तिथि का व्रत नियमपूर्वक करने का संकल्प लो तो तुम्हारे पति पुनः जीवित हो जाएंगे! ब्रहामण कन्या ने रानी इंद्राणी के कहे अनुसार चौथ के व्रत का संकल्प किया। इस पर उसका पति जीवित हो उठा और वह पुनः सुहागिन हो गई। इसलिए प्रत्येक स्त्री को अपने पति की दीर्घायु के लिए यह व्रत करना चाहिए।