ब्लॉग

वासुकी कालसर्प योग/ दोष

vasuki

जब मनुष्य की जन्मकुंडली में राहु तीसरे घर में और केतु नवम स्थान में और इस बीच सारे ग्रह ग्रसित हों तो वासुकी नामक कालसर्प योग बनता है। मनुष्य अपने भाई-बहनों से भी परेशान रहता है। अन्य पारिवारिक सदस्यों से भी आपसी खींचतान बनी रहती है। रिश्तेदार एवं मित्रगण उसे प्राय: धोखा देने में लगे रहते है । घर में सुख-शांति का अभाव रहता है। मनुष्य को समय-समय पर व्याधि ग्रसित करती रहती हैं जिसमें अधिक धन खर्च हो जाने के कारण उसकी आर्थिक स्थिति भी असामान्य रहती है। अर्थोपार्जन के लिए मनुष्य को विशेष संघर्ष करना पड़ता है, फिर भी उसमें सफलता की सम्भवना संदिग्ध ही रहती है । चंद्रमा के पीड़ित होने के कारण उसका जीवन मानसिक रूप से उद्विग्न रहता है। इस योग के कारण मनुष्य को कानूनी मामलों में विशेष रूप से नुकसान उठाना पड़ता है। राज्यपक्ष से हमेशा प्रतिकूलता रहती है। मनुष्य को नौकरी या व्यवसाय आदि के क्षेत्रा में निलम्बन या नुकसान उठाना पड़ता है। यदि मनुष्य अपने जन्म स्थान से दूर जाकर कार्य करें तो अधिक सफलता मिलती है। लेकिन सब कुछ होने के बाद भी मनुष्य अपने जीवन में बहुत सफलता प्राप्त करता है। विलम्ब से परन्तु उत्तम भाग्य का निर्माण भी होता है और शुभ कार्य सम्पादन हेतु उसे कई अवसर प्राप्त होते हैं।

अनुकूल करने के उपाय :-

• महामृत्युंजय मंत्रों का जाप प्रतिदिन 11 माला रोज करें, जब तक राहु केतु की दशा-अंर्तदशा रहे और हर शनिवार को श्री शनिदेव का तेल से अभिषेक करें और मंगलवार को हनुमान जी को चौला चढ़ायें।
• किसी शुभ मुहूर्त में नाग पाश यंत्र को अभिमंत्रित कर धारण करें।
• प्रत्येक बुधवार को काले वस्त्रों में उड़द या मूंग एक मुट्ठी डालकर, राहु का मंत्रा जप कर भिक्षाटन करने वाले को दे दें। यदि दान लेने वाला कोई नहीं मिले तो बहते पानी में उस अन्न हो प्रवाहित करें। 72 बुधवार तक करने से अवश्य लाभ मिलता है।
• नव नाग स्तोत्र का एक वर्ष तक प्रतिदिन पाठ करें।

Please follow and like us:

Leave a Reply