अनन्त कालसर्प योग/ दोष
जब जन्मकुंडली में राहु लग्न में व केतु सप्तम में हो और उस बीच सारे ग्रह हों तो अनन्त कालसर्प योग बनता है। ऐसे मनुष्यो के व्यक्तित्व निर्माण में कठिन परिश्रम की आवश्यकता पड़ती है। उसके विद्यार्जन व व्यवसाय के काम बहुत सामान्य ढंग से चलते हैं और इन क्षेत्रों में थोड़ा भी आगे बढ़ने के लिए मनुष्य को कठिन संघर्ष करना पड़ता है। मानसिक पीड़ा कभी-कभी उसे घर- गृहस्थी छोड़कर वैरागी जीवन अपनाने के लिए भी उकसाती हैं। लाटरी, शेयर व सूद के व्यवसाय में ऐसे मनुष्यो की विशेष रुचि होती हैं किंतु उसमें भी इन्हें ज्यादा हानि ही होती है। शारीरिक रूप से उसे अनेक व्याधियों का सामना करना पड़ता है। उसकी आर्थिक स्थिति बहुत ही डांवाडोल रहती है। फलस्वरूप उसकी मानसिक व्यग्रता उसके वैवाहिक जीवन में भी बहुत मुश्किलें खड़ी हो जाती है। मनुष्य को माता-पिता के स्नेह व संपत्ति से भी वंचित रहना पड़ता है। उसके निकट संबंधी भी नुकसान पहुंचाने से बाज नहीं आते। कई प्रकार के षड़यंत्रों व मुकदमों में फंसे ऐसे मनुष्य की सामाजिक प्रतिष्ठा भी घट जाती है। उसे बार-बार अपमानित होना पड़ता है। लेकिन प्रतिकूलताओं के बावजूद मनुष्य के जीवन में एक ऐसा समय अवश्य आता है जब चमत्कारिक ढंग से उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। वह चमत्कार किसी कोशिश से नहीं, अपने आप ही अचानक घटित होता है। सम्पूर्ण समस्याओं के बाद भी जरुरत पड़ने पर किसी चीज की इन्हें कमी नहीं रहती है। यह किसी का बुरा नहीं करते हैं। जो जातक इस योग से ज्यादा परेशानी महसूस करते हैं। उन्हें निम्नलिखित उपाय कर लाभ उठाना चाहिए।
अनुकूल करने के उपाय :-
• हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें।
• घर में मयूर (मोर) पंख रखें।
• देवदारु, सरसों तथा लोहवान को उबालकर उस पानी से सवा महीने तक स्नान करें।
• विद्यार्थी सरस्वती जी के बीज मंत्रों का एक वर्ष तक जाप करें और विधिवत उपासना करें।
• महामृत्युन्जय मन्त्र का जाप करने से भी अनन्त काल सर्प दोष का शान्ति होता है।
• शुभ मुहूर्त में बहते पानी में कोयला तीन बार प्रवाहित करें।