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बनावटी कृष्ण की कहानी

krishna poundrak

बहुत पहले की बात है चुनार देश का प्राचीन नाम करुपदेश हुआ करता था और वहां के राजा का नाम पौंड्रक था। कुछ लोगो का मानना है कि पुंड्र देश का राजा होने के कारण उसको पौंड्रक कहा जाता था । कुछ लोगो का मानना है कि वह काशी का राजा ही था । जबकि चेदि देश में यह “पुरुषोत्तम” नाम से विख्यात था। उसके पिता का नाम वसुदेव था। इसलिए वह खुद को वासुदेव कहलवाता था। वह द्रौपदी के स्वयंवर में भी उपस्थित था। कौशिकी नदी के तट पर स्थित किरात, वंग एवं पुंड्र देशों पर उसका आधिपत्य था। वह मूर्ख होने के साथ साथ भी अविचारी था।
पौंड्रक को उसके चापलूस मित्रों ने यह बता रखा था कि असल में पौंड्रक, परमात्मा वासुदेव है और वही विष्णु का अवतार भी है, मथुरा के राजा कृष्ण नहीं, कृष्ण तो ग्वाले है। पुराणों में उसके बनावटी कृष्ण का रूप धारण करने की कथा है।

राजा पौंड्रक बनावटी चक्र, शंख, तलवार, मोर मुकुट, कौस्तुभ मणि, पीले वस्त्र पहनकर खुद को कृष्ण कहलवाता था। एक दिन उसने भगवान श्री कृष्ण को यह संदेश भेजा कि “पृथ्वी के समस्त लोगों पर अनुग्रह कर उनका उद्धार करने के लिए मैंने वासुदेव नाम से अवतार लिया है। भगवान वासुदेव का नाम एवं वेषधारण करने का अधिकार केवल मेरा है। इन चिह्रों पर तुम्हारा कोई अधिकार नहीं । तुम इन चिह्रों एवं नाम को तुरंत ही त्याग दो, अन्यथा युद्ध के लिए तैयार हो जाओ।”

बहुत समय तक श्रीकृष्ण उसकी बातों और हरकतों पर ध्यान नहीं दिया, परन्तु बाद में जब उसकी ये सब बातें अधिक सहन नहीं हुईं। उन्होंने उसको प्रत्युत्तर भेजा, “तेरा संपूर्ण विनाश करके, मैं तेरे सारे गर्व का परिहार शीघ्र ही करूंगा।”

यह सुनकर पौंड्रक वासुदेव भगवान श्री कृष्ण के विरुद्ध युद्ध की तैयारी शुरू कर दी । पौंड्रक अपने मित्र काशीराज की सहायता प्राप्त करने के लिए वह काशीनगर गया। यह पता चलते ही श्री कृष्ण ने पूरी सेना के साथ काशीदेश पर आक्रमण कर दिया ।

श्री कृष्ण आक्रमण कर रहे हैं- यह सब देखकर पौंड्रक और काशीराज अपनी-अपनी सेना लेकर नगर की सीमा पर आ गए । युद्ध के समय पौंड्रक ने नकली शंख, चक्र, गदा, धनुष, वनमाला, रेशमी पीतांबर, उत्तरीय वस्त्र, मूल्यवान आभूषण आदि धारण किया हुआ था एवं वह गरूड़ पर विराजमान था ।

नाटकीय ढंग से युद्धभूमि में आते हुए इस “बनावटी कृष्ण” को देखकर भगवान कृष्ण को अत्यधिक हसी आ गयी । इसके बाद युद्ध हुआ और पौंड्रक का वध कर वासुदेव श्रीकृष्ण वापस द्वारिका चले गए।

इसके उपरांत बदले की भावना से पौंड्रक के पुत्र सुदक्षण ने कृष्ण का वध करने के लिए मारण-पुरश्चरण किया, परन्तु द्वारिका की ओर भेजी गयी, वह आग की लपट रूप कृत्या ही फिर से काशी में आकर सुदक्षणा की मौत का कारण बन गई। उसने काशी नरेश पौंड्रक के पुत्र सुदक्षण को ही भस्म करके रख दिया !

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