कैसे हुआ था रावण का जन्म !
लंकापति रावण को लोग अन्याय, अनीति, अनाचार, काम, क्रोध, लोभ, मोह, अधर्म और बुराई का प्रतीक मानते हैं और जिसके कारण उससे घृणा करते हैं। परन्तु उससे भी महत्वपूर्ण बात यहां यह है कि दशानन रावण में कितना ही राक्षस का स्वभाव क्यों न हो, उसके गुणों को अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए ।
रावण में गुण ज्यादा और अवगुण कम थे ! रावण बहुत ही बड़ा विद्वान् या कहे तो प्रकण्ड विद्वान् था । वेद-शास्त्रों पर उसकी अच्छी पकड़ थी और वह भगवान भोलेशंकर का परम भक्त था। उसे तंत्र, मंत्र, सिद्धियों तथा कई अन्य गूढ़ विद्याओं का परम ज्ञान था। वह ज्योतिष विद्या में भी निपुण था ।
रावण का जन्म कैसे हुआ ?
रावण के जन्म के विषय में अलग-अलग ग्रंथों में अलग-अलग उल्लेख मिलते हैं। वाल्मीकि द्वारा लिखित रामायण महाकाव्य,पद्मपुराण तथा श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार हिरण्याक्ष एवं हिरण्यकश्यप दूसरे जन्म में रावण और कुंभकर्ण के रूप में पैदा हुए थे ।
वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण, पुलस्त्य मुनि का पोता था अर्थात् उनके पुत्र विश्वश्रवा का पुत्र था। विश्वश्रवा की देववर्णीनी और केकसी नामक दो पत्नियां थी। देववर्णीनी के कुबेर को जन्म देने पर सौतिया डाह वश केकसी ने अशुभ समय में गर्भ धारण किया था ।
इसी कारण से उसके गर्भ से रावण तथा कुंभकर्ण जैसे भयंकर राक्षसों का जन्म हुआ था । तुलसीदास जी के रामचरितमानस में रावण का जन्म श्राप के कारण हुआ है। वे नारद एवं प्रतापभानु की कथाओं को रावण के जन्म का कारण बताते हैं।
पौराणिक कथा-
इसके अनुसार भगवान विष्णु के दर्शन हेतु सनक, सनंदन आदि ऋषि वैकुंठ पधारे परंतु भगवान विष्णु के द्वारपाल जय और विजय ने उन्हें प्रवेश करने से रोक दिया था । ऋषिगण अप्रसन्न हो गए और क्रोध में आकर जय-विजय को श्राप दिया कि तुम राक्षस हो जाओ। जय-विजय ने प्रार्थना की व अपराध के लिए क्षमा मांगी।
भगवान विष्णु ने भी ऋषियों से क्षमा करने को कहा। तब ऋषियों ने अपने श्राप की तीव्रता कम की और कहा कि तीन जन्मों तक तो तुम्हें राक्षस योनि में रहना पड़ेगा और उसके पश्चात तुम पुनः इस पद पर प्रतिष्ठित हो सकोगे। इसके साथ एक और शर्त ये भी थी कि भगवान विष्णु या उनके किसी अवतार के हाथों तुम्हारी मृत्यु अनिवार्य होगी ।
यह श्राप राक्षसराज, लंकापति, दशानन रावण के जन्म की आदि गाथा है। भगवान विष्णु के ये द्वारपाल पहले जन्म में हिरण्याक्ष व हिरण्यकश्यप राक्षसों के रूप में जन्मे। हिरण्याक्ष राक्षस बहुत शक्तिशाली था और उसने पृथ्वी को उठाकर पाताल लोक में पहुंचा दिया था।
पृथ्वी की पवित्रता बहाल करने के लिए भगवान विष्णु को वराह अवतार धारण किया था। फिर विष्णु ने हिरण्याक्ष का वधकर पृथ्वी को मुक्त कराया था।
हिरण्यकश्यप भी शक्तिशाली राक्षस था और उसने वरदान प्राप्तकर अत्याचार करना प्रारंभ कर दिया था। भगवान विष्णु द्वारा अपने भाई हिरण्याक्ष का वध करने की वजह से हिरण्यकश्यप विष्णु विरोधी था और अपने विष्णुभक्त पुत्र प्रह्लाद को मरवाने के लिए भी उसने कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
फिर भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार धारण कर हिरण्यकश्यप का वध किया था। त्रेतायुग में ये दोनों भाई रावण और कुंभकर्ण के रूप में पैदा हुए और तीसरे जन्म में द्वापर युग में जब भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में जन्म लिया, तब ये दोनों शिशुपाल व दंतवक्त्र नाम के अनाचारी के रूप में पैदा हुए थे।
क्यों पड़ा रावण का दशानन नाम–
रावण को दशानन भी कहते हैं। उसका नाम दशानन उसके दशग्रीव नाम पर पड़ा। कहते हैं कि महातपस्वी रावण ने भगवान शंकर प्रसन्न कर को एक-एक कर अपने दस सिर प्राप्त किए थे।
उस कठोर तपस्या के बल पर ही उसे दस सिर प्राप्त हुए, जिन्हें लंका युद्ध में भगवान राम ने अपने बाणों से एक-एक कर काट दिया था।
यदि रावण ने कठोर तपस्या से अर्जित अपने उन दस सिरों की बुद्धि का सार्थक और सही उपयोग किया होता,तो शायद इतिहास में अपनी प्रकांड विद्वता के लिए अमर हो जाता और लोग उससे घृणा नहीं करते, बल्कि समस्त लोको में पूजा की जाती ।