पद्म कालसर्प योग/दोष
जब मनुष्य की जन्मकुंडली में राहु पंचम व केतु एकादश भाव में तथा इस बीच सारे ग्रह हों तो पद्म कालसर्प योग बनता है। इसके कारण मनुष्य के विद्याध्ययन में कुछ व्यवधान उपस्थित होता है। परंतु कालान्तर में वह व्यवधान स्वयं समाप्त हो जाता है। उन्हें संतान प्राय: विलंब से प्राप्त होती है, या संतान होने में आंशिक रूप से व्यवधान उपस्थित होता है। मनुष्य को पुत्र संतान की प्राय: चिंता बनी रहती है। मनुष्य का स्वास्थ्य कभी-कभी असामान्य हो जाता है। इस योग के कारण दाम्पत्य जीवन सामान्य होते हुए भी कभी-कभी अधिक तनावपूर्ण हो जाता है। परिवार में मनुष्य को अपयश मिलने का भी भय बना रहता है। मनुष्य के मित्रगण स्वार्थी होते हैं और वे सब उसका पतन कराने में सहायक होते हैं। मनुष्य को तनावग्रस्त जीवन व्यतीत करना पड़ता है। इस योग के प्रभाव से मनुष्य के गुप्त शत्रू भी होते हैं। वे सब उसे नुकसान पहुंचाते हैं। उसके लाभ मार्ग में भी आंशिक बाधा उत्पन्न होती रहती है एवं चिंता के कारण मनुष्य का जीवन संघर्षमय बना रहता है। मनुष्य द्वारा अर्जित सम्पत्ति को प्राय: दूसरे लोग हड़प लेते हैं। मनुष्य को व्याधियां भी घेर लेती हैं। इलाज में अधिाक धन खर्च हो जाने के कारण आर्थिक संकट उत्पन्न हो जाता है। मनुष्य वृध्दावस्था को लेकर अधिक चिंतित रहता है एवं कभी-कभी उसके मन में संन्यास ग्रहण करने की भावना भी जागृत हो जाती है। लेकिन इतना सबकुछ होने के बाद भी एक समय ऐसा आता है कि मनुष्य आर्थिक दृष्टि से बहुत मजबूत हो जाता है, समाज में मान-सम्मान मिलता है और कारोबार भी ठीक रहता है यदि मनुष्य अपना चाल-चलन ठीक रखें, मध्यपान न करें और अपने मित्र की सम्पत्ति को न हड़पे तो उपरोक्त कालसर्प के प्रतिकूल प्रभाव लागू नहीं होते हैं।
अनुकूल करने के उपाय :-
• नित्य प्रति हनुमान चालीसा का 11 बार पाठ करें और हर शनिवार को लाल कपड़े में आठ मुट्ठी भिंगोया चना व ग्यारह केले सामने रखकर हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें और उन केलों को बंदरों को खिला दें और प्रत्येक मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में बूंदी के लड्डू का भोग लगाएं और हनुमान जी की प्रतिमा पर चमेली के तेल में घुला सिंदूर चढ़ाएं और साथ ही श्री शनिदेव का तैलाभिषेक करें। ऐसा करने से वासुकी काल सर्प योग के समस्त दोषों की शांति हो जाती है।
• शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार से व्रत प्रारंभ कर 18 शनिवारों तक व्रत करें और काला वस्त्र धारण कर 18 या 3 माला राहु के बीज मंत्र का जाप करें। फिर एक बर्तन में जल, दुर्वा और कुशा लेकर पीपल की जड़ में चढ़ाएं। भोजन में मीठा चूरमा, मीठी रोटी, समयानुसार रेवड़ी तिल के बने मीठे पदार्थ सेवन करें और यही वस्तुएं दान भी करें।
• शुभ मुहूर्त में मुख्य द्वार पर चांदी का स्वस्तिक एवं दोनों ओर धातु से मिर्मित नाग चिपका दें।
• नाग पंचमी का व्रत भी अवश्य करें।
• रात में घी का दीपक जलाकर पीपल की जड़ में रख दें।
• श्रावण के महीने में प्रतिदिन स्नानोपरांत 11 माला ‘नम: शिवाय’ मंत्र का जप करने के उपरांत शिवजी को बेलपत्र व गाय का दूध तथा गंगाजल चढ़ाएं तथा सोमवार का व्रत करें।