महापद्म कालसर्प योग/दोष
जब मनुष्य की जन्मकुंडली में राहु छठे भाव में और केतु बारहवे भाव में और इसके बीच सारे ग्रह अवस्थित हों तो महापद्म कालसर्प योग कहलाता है। इस योग में मनुष्य शत्रु विजेता होता है, विदेशों से व्यापार में लाभ कमाता है लेकिन बाहर ज्यादा रहने के कारण उसके घर में शांति का अभाव रहता है। इस योग में मनुष्य को एक ही चिज मिल सकती है धन या सुख। इस योग के कारण मनुष्य यात्रा बहुत करता है उसे यात्राओं में सफलता भी मिलती है परन्तु कई बार अपनो द्वारा धोखा खाने के कारण मनुष्य के मन में निराशा की भावना जागृत हो उठती है एवं वह अपने मन में शत्रुता पालकर रखने वाला भी हो जाता है। मनुष्य का चरित्र भी बहुत संदेहास्पद हो जाता है। उसके धर्म की हानि होती है। वह समय-समय पर बुरे स्वप्न भी देखता है। उसकी वृध्दावस्था कष्टप्रद होती है। इतना सब कुछ होने के बाद भी मनुष्य के जीवन में एक बहुत अच्छा समय आता है और वह एक अच्छा दलील देने वाला वकील अथवा तथा राजनीति के क्षेत्र में सफलता पाने वाला नेता बनता है।
अनुकूल करने के उपाय :-
• प्रयाग(इलाहाबाद) में संगम पर नाग-नागिन की विधिवत पूजन कर दूध के साथ संगम में प्रवाहित करें एवं तीर्थराज प्रयाग में संगम स्थान में तर्पण श्राध्द भी एक बार अवश्य करें।
• मंगलवार एवं शनिवार को रामचरितमानस के सुंदरकाण्ड का 108 बार पाठ श्रध्दा पूर्वक अवश्य करें।
• रात को घी का दीपक जलाकर पीपल के पेड़ की जड़ के पास रख दें।
• शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार से शनिवार व्रत आरंभ करना चाहिए। यह व्रत 18 बार करें। काला वस्त्र धारण करके 18 या 3 राहु बीज मंत्र की माला जपें। तदन्तर एक बर्तन में जल, दुर्वा और कुश लेकर पीपल के पेड़ की जड़ में चढ़ाये । भोजन में मीठा चूरमा, मीठी रोटी समयानुसार रेवड़ी, भुग्गा, तिल के बने मीठे पदार्थ सेवन करें और यही दान में भी दें।
• श्रावण(सावन) मास में 30 दिनों तक महादेव का अभिषेक करें।